Supercharging Enterprise Productivity: NewgenONE Marvin – GenAI for the Enterprise ...
Author : Manohar Manoj
Linkage between Academic institutions and corporate sector
We need a major reshuffling in our education policy and programs Manohar Manoj, Editor, Economy India Research and Development( R&D) activities are one of the...
क्या सोशल मीडिया का केवल अस्तित्व रहेगा ?
मनोहर मनोज पहले तो हम यह बात मान लें कि मीडिया जिस भी स्वरूप में हो आधुनिक समाजों और लोकतांत्रिक राजनीतिक व्यवस्था की एक अपरिहार्य जरूरत है। एक ऐसी जरूरत जो एक तरफ समाज की मूलभूत आवश्यकताओं की श्रेणी में शामिल है तो दूसरी तरफ लोकतंत्र के चारों खंबों में अकेला खंबा जो संवैधानिक नहीं होते हुए भी सबसे ज्यादा तात्कालिक महत्व की पात्रता रखती है। परंतु मीडिया के साथ खास बात ये है कि इसके साथ कई सीमाएं हैं, शर्तें हैं और सबसे उपर इसे समकालीन चलंत तकनीकों के साये में ही चलना पड़ता है। मीडिया की ये सीमाएं और विशिष्टाएं कहीं ना कहीं लोकतंत्र के बाकी तीन खंबों से उलट इसे संवैधानिक सांस्थानिक दर्जा नहीं मिलने की वजह से उपजी हैं तो दूसरी तरफ अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार के तहत यह सदुपयोगों और दुरूपयोगों दोनो की विरासत का हिस्सा बन कर आपस में आंख मिचौनी खेलती रही है। मीडिया की इन एतिहासिक और समकालीन परिस्थितियों के बीच सोशल मीडिया का अभ्युदय एक बड़ी परिघटना उभर कर सामने आयी है। जाहिर है कि इस सोशल मीडिया के आगमन को तकनीक ने सुलभ बनाकर इसे एक तरह से सर्वसुलभ बना दिया। यानी सोशल मीडिया का औपचारिक मीडिया के समानांतर ना केवल अपना वजूद बना है बल्कि कई रूपों में यह औपचारिक मीडिया के स्थानापन्न रूप में सूचना और पब्लिसिटी दोनो मामलों में इसका खूब उपयोग भी किया जा रहा है। अब सवाल ये है कि क्या सोशल मीडिया का चलन और प्रसार सचमुच स्वागत योग्य है? क्या यह समाज, देश और लोकतंत्र के व्यापक सरोकारों, विचारों, दशाओं ओर दिशाओं को प्रतिबिंबित करने की पात्रता रखती है? क्या इसे नये नियमन और दिशा निर्देशों से परिचालित किये जाने की भी जरूरत है? इन सारे सवालों का उत्तर ये है कि सोशल मीडिया के आगमन ने मीडिया का नि:संदेह जबरदस्त लोकतांत्रिकरण किया है , इसने हर लोगों को अपनी अभिव्यक्ति का मंच दिया, इसने औपचारिक और परंपरागत मीडिया में स्थापित कौकस यानी चंद लोगों को ही अपनी अभिव्यक्ति का अवसर मिलना, सभी जरूरी खबरों और मुद्दों के कवरेज की गारंटी नहीं होना, साधन संपन्नों के उत्पादों का इश्तहार निकलना और मीडिया संस्था का लोकतंत्र के बाकी तीन अंगों के साथ के संबंधों में पारदर्शिता नहीं दिखना वगैरह वगैरह। सोशल मीडिया ने बहुत हद तक सिटिजन जर्नलिस्ट यानी नागरिक पत्रकार की अवधारणा को एक नया उभार दिया है। लेकिन सवाल ये है क्या सोशल मीडिया के जरिये हुआ मीडिया का लोकतांत्रिकरण और औपचारिक मीडिया का अवमूल्यन क्या हमारे लिए हर हाल में बेहतर स्थिति लेकर आया है। इस प्रश्न का जबाब है बिल्कुल नहीं। सोशल मीडिया ने देश की हर जनता को अभिव्यक्ति का सुनिश्चित मंच प्रदान कर दिया परंतु वह देश समाज और लोकतंत्र को समुचित दिशा नहीं दे सकता। सोशल मीडिया जनसमस्याओं की अभिव्यक्ति का एक शानदार उपकरण जरूर हो सकता है और इसका यदि इस रूप में वैधानिक तरीके से उपयोग किया जाए तो इससे अच्छी बात कोई और नहीं हो सकती। लेकिन सोशल मीडिया के जरिये ये बात तय मानिये कि यह देश में सुधी जनमत का निर्माण नहीं कर सकता। सोशल मीडिया का अभी जो वर्तमान स्वरूप है वह तो यही दर्शाता है कि इसमे बहुसंख्यक भागीदार लोग राजनीतिक गुटों की वैचारिक मार्केटिंग करते हैं, इसमें भागीदार बहुसंख्यक लोगों के पास ना तो अपनी बौद्धिक विचारधारा और समझ है और ना ही इस मंच पर स्वतंत्र सुझाव और विमर्श की अभी तक कोई परिपार्टी नयी शुरू हो सकी है। औपचारिक मीडिया का इतिहास इस मामले में बिल्कुल अलग रहा है, वह समाज और देश में एक स्वस्थ, निष्पक्ष और औचित्यपरक जनमत के निर्माण का वाहक रहा है। ये बात अलग है कि वह औपचारिक मीडिया खासकर टीवी अब उसी सोशल मीडिया के दबाव में कहीं ना कहीं गुट विशेष को तरजीह देने वाले मीडिया में परिवर्तित हुआ है। कहना होगा कि सोशल मीडिया ने कई मायनों में अपने को यह दिखाया है कि वह एक हकारे के आवाज पर अपना मत निर्मित कर लेती है, ध्रुवीकृत होती है, सही व गलत का चयन नहीं करती है, भावुकता और पहचान के सवालों के प्रभाव में ज्यादा आती है। जिसमे ...
Kaushambi becomes a hub of pollution in NCR region
Kaushambi becomes a hub of pollution in the NCR region Located exactly at the Delhi-Ghaziabad border, Kaushambi( a resident colony) is facing tremendous shots of...
कश्मीर युनिवर्सिटी में डाक्टर परदीप कुमार की पुस्तक का विमोचन
कश्मीर युनिवर्सिटी श्रीनगर में सैषन की अध्यक्षता तथा शोध पत्र प्रस्तुति उपरान्त डॉ0 प्रदीप की पुस्तक का विमोचन एन0आई0आई0एल0एम0 युनिवर्सिटी कैथल, हरियाणा के डीन एवं...
अमृत काल में अर्थव्यवस्था पर इतराने जैसे हालात नहीं
अमृत काल में अर्थव्यवस्था पर इतराने जैसे हालात नहीं आजादी के पिचहत्तरवें साल के इस अमृत वर्ष में देश की तमाम व्यवथाओ का एक विहंगम जायजा लेने के क्रम में जब हम अपनी अर्थव्यवस्था पर नजर डालते हैं तो इस कालखंड में एक गहरी विभाजन रेखा दिखाई पड़ती है । यह विभाजन रेखा है वर्ष 1991 में शुरू हुई नयी आर्थिक नीति की। यानी भारतीय अर्थव्यवस्था के पिछले पिचहत्तर साल के काल को एक तो 1991 के पूर्व के काल और दूसरा 1991 के बाद के काल के रूप में जाना जा सकता है । 1991 के पूर्व का काल जहां साम्यवादी व समाजवादी नीतियों विचारधाराओंं और कार्यक्रमों से प्रभावित और संचालित था वही 1991 के बाद का काल बाजारीकरण, उदारीकरण, निजीकरण व भूमंडलीकरण के चौपाए पर ज्यादा निवेश, ज्यादा विकास दर, ज्यादा राजस्व और कल्याणकारी कार्यक्रमों पर ज्यादा सरकारी बजट आबंटन की नीतियों से प्रभावित था। कहना होगा कि आजादी के बाद ना केवल विचारधारा के समकालीन परिवेश और फैशन की वजह से बल्कि देश की आर्थिक परिस्थितियों और जरूरतों के हिसाब से सरकार प्रायोजित नियोजित व्यवस्था का प्रादूर्र्भाव हुआ। यह एक ऐसी व्यवस्था थी जिसमें सरकारी विभाग, सरकारी उपक्रम, सरकारी योजना, सरकारी निवेश, सार्वजनिक निर्माण व उत्पादन व सार्वजनिक वितरण प्रणाली का ही बोलबाला था।उस समय ये ...
वर्ल्ड कप के फाइनल में हमारी हार
https://youtu.be/MTpy2OlcL6s?si=ZUGijRlkHLRZXudO वर्ल्ड कप के फाइनल में हमारी हार इसलिए हुई क्योंकि हम जीत हासिल करने पहले ही आत्म प्रवंचना की हाइट पर चले गए। एक...
DR. PARDEEP KUMAR’S BOOK WAS RELEASED
DR. PARDEEP KUMAR’S BOOK WAS RELEASED FOLLOWING HIS PRESENTATION OF A REASEARCH PAPER AND PRESIDING OVER A TECHNICAL SESSION AT KASHMIR UNIVERSITY IN SRINAGAR Dr....
Corruption, Good Governance, and Systemic Change
Manohar Manoj, (Editor, Economy India, Author of the book, A Crusade Against Corruption and A Dialogue on System Change) All the three constituent words of...
Blue Jet Healthcare Limited’s Initial Public Offering to open on Wednesday, October 25, 2023, sets price band at ₹329 to ₹346 per Equity Share
Blue Jet Healthcare Limited’s Initial Public Offering to open on Wednesday, October 25, 2023, sets price band at ₹329 to ₹346 per Equity Share ...

