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इतिहास बदलने व नया इतिहास रचने वाले निर्माण कार्यों में भ्रष्टाचार

इतिहास बदलने व नया इतिहास रचने वाले निर्माण कार्यों में भ्रष्टाचार

मनोहर मनोज

अभी देश में कई नये निर्माण कार्यों के जरिये इतिहास बदलने का काम किया गया, बल्कि एक नया इतिहास भी लिखने का काम किया गया। ये दोनो काम होने चाहिए थे जिसे किये भी गए जो बड़ी अच्छी बात है। पर इतिहास बदलने व नया इतिहास रचने वाले इन निर्माण कार्यों में भ्रष्टाचार, निर्माण जनित कमियां व कई तकनीकी दोष का बीते अंतराल में जो नजारा दिखा , जिनका कई मीडिया रिपोर्टों से खुलासा भी हुआ, वह बेहद हैरान करने वाला था। हमारे देश में भ्रष्टाचार की विकरालता जो देश की तमाम व्यवस्थाओं में, जन जन में और कण कण में व्याप्त है जिसेे लेकर मौजूदा मोदी सरकार भी समय समय पर इन्हें निर्मूल करने की हूंकार भी भरती रहती है, उसका असल स्वरूप क्या है वहीं ढाक के तीन पात। चाहे वह पुरानी ब्रिटिश हूकूमत द्वारा देश में करीब सौ साल पूर्व बनवायी गई संसद भवन के बदले एक नयी संसद भवन के निर्माण का मामला हो, चाहे अंतरराष्ट्रीय व्यापार प्रदर्शनी स्थल प्रगति मैदान के बदले नवनिर्मित भारत मंडपम के समूचे बाहरी परिसर की निर्माण फिनिशिंग की छीछालेदर व उसके नीचे बनवायी गई पार्कि ंग व भूमिगत सुरंग मार्ग में भारी जलजमाव की शिकायत का मामला हो, चाहे महाराष्ट्र में निर्मित शिवाजी महाराज की प्रतिमा के निर्माण के छह माह के भीतर ढह जाने का मामला हो, चाहे नवनिर्मित अयोध्या नगरी में राम मंदिर सहित तमाम निर्माण कार्यांे में खामियों का अभी बीते मानसून में उभरा नजारा हो, चाहे उज्जैन के महाकाल व वाराणसी के विश्वनाथ कोरीडोर में भी उभरी कुछेक खामियां हो या फिर नवनिर्मित नालंदा विश्वविद्यायल के निर्माण कार्य में कई जगह दिखी दरारें हो, हमे सचमूच बेहद शर्मशार करती हैं। यह ठीक है कि प्रधानमंत्री मोदी ने महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव को देखते हुए शिवाजी महराज की प्रतिमा के गिरने को लेकर सार्वजनिक रूप से माफी जरूर मांग ली, पर सवाल है कि भारत में भ्रष्टाचार क्या इतिहास बनाने वाली व नये इतिहास लिखने वाले निर्माण कार्यांे को भी अपने से जुदा नहीं रख सकती । क्या हमारा राजनीतिक निजाम इन निर्माण कार्यों में नो टोलरेंस टू करप्शन का अनुपालन करवाने की अपनी मजबूत इच्छा शक्ति प्रदर्शित नहीं कर पाता। क्या इस देश में भ्रष्टाचार का तंत्र जो राजनीतिज्ञ नौकरशाह इंजीनियर और ठेकेदारों के नापाक गठबंधन पर आधारित है वह देश को खोखला बनाने के साथ साथ देश के निवनिर्मित इतिहास पर कलंक लगाने के लिए आमादा है।
इन उपर उल्लिखित निर्माण कार्यांे में जरूरी नहीं केवल फंड का गबन हुआ, बल्कि इन निर्माण कार्यों की जो समूची बहुचरणीय प्रक्रिया है उसके आनन फानन व हडबड़ी में निपटाने से भी उपजा हो। ये भी हो सकता है कि इन निर्माण कार्यों की अकेली वाहवाही लेने और अपनी पीठ ठपठपाये जाने की जल्दबाजी से भी उपजा हो, या फिर इन निर्माण कार्यों में राजनीतिज्ञों के गुर्गों को किसी भी तरह के स्तरहीन कार्य करवाये जाने के उपर से मिले अभयदान से भी उपजा हो।
आम तौर पर देखा जाता है कि जिन निर्माण कार्यों में पर्याप्त समयअवधि दी जाती है, उसके निर्माण कार्य बेहतर व स्तरीय होते हैं। कई बार हमारे यहां निर्माण कार्य की अवधि इसलिए भी विस्तारित की जाती हैं जिससे निर्माण कार्य की प्राक्कलित राशि बढायी जा सके। दूसरी तरफ ये भी देखा जाता है कि निर्माण कार्य की पर्याप्त अवधि नहीं दिये जाने और इसके रातोरात निर्माण करवाये जाने से भी निर्माण कार्य में कई खामियां उजागर होती हैं और उनकी क्वालिटी पर असर पड़ता है।
आज भी देश में इतिहास में नाम दर्ज कराने वाली निर्माण क्वालिट ी का जिक्र होता है तो या तो पूर्व मध्यकाल के राजाओं द्वारा निर्मित हमे तमाम मंदिर दिखते हैं, या फिर मध्यकाल व मुगल काल में निर्मित महल, किले, व मकबरे दिखते हंै, या फिर ब्रिटिश काल में निर्मित विक्टोरिया महल व वीटी रेल स्टेशन, दिल्ली के लूटियन जोन में निर्मित तबक ा वायसराय व आज का राष्ट्रपति भवन, नार्थ व साउथ ब्लाक तथा संसद भवन दिखता है। आज भी अंग्रेजो के समय बने रेलवे स्टेशन व रेल पुल रॉक सालिड दिखते हैं जबकि विडंबना ये है कि आज के अधुनातन निर्माण कार्य मानसून की एक बरसात भी नहीं झेल पाते।
हमे कहना होगा कि हम एक आधुनिक, लोकतांत्रिक, तकनीकी व वैज्ञानिक युग में जी रहे हैं पर हम अबतक नया इतिहास बनाने वाली इमारत नहीं तैयार कर पाये। इसमे कभी भ्रष्टाचार आड़ें आता है तो कभी निर्माण तकनीक की खामी उभरती है तो कभी राजनीतिज्ञों की नापाक शैली आड़े आती है।
गौरतलब है कि भारत में हर साल केन्द्र व राज्य सरकारों द्वारा करीब बीस लाख करोड़ रुपये अनेकानेक विकास व निर्माण कार्यों में यानी योजना व्यय व पूंजीगत व्यय के मद में खरची जाती है। यह ठीक है कि हर निर्माण कार्य कराने वाली एजेंसी जिसे सरकार निर्माण कार्य के लिए आउटसोर्स करती है वह अपने निवेश व कार्यसंचालन पर एक उचित मुनाफा कमाने की भी हकदार है। परंतु सरकार के संबंधित विभाग के इंजीनियर और विभागीय व मंत्रालीय स्तर पर कार्यरत नौकरशाह व मंत्री निर्माण फंड की बंदरबांट करते हैं तो निर्माण कार्य की क्वालिटी प्रभावित होती है। इससे देश में हर आधारभूत संरचना चाहे बिल्डिंग हो, सडक़ हो, पुल हो या फिर कोई हवाई अडड़ा हो, बंदरगाह हो उनकी वास्तविक लागत ज्यादा बैठती है और उत्पादन की लागत व आमदनी में असंतुलन बैठता है, जनता के करों से प्राप्त धन का दुरूपयोग होता है और अंत में देश की सार्वजनिक स्तर पर बदनामी होती है। गौलतब है कि बुनियादी संरचना के उपरोक्त उल्लिखित सभी मामलों में निरंतर शिकायते आती रहती हैं। कई मामले तो मीडिया की सुर्खियां भी नहीं बन पाती। अब सवाल है कि ये सिलसिला कब तक चलेगा? क्या देश में भ्रष्टाचार का मुद्दा केवल राजनीतिक फायदे व नुकसान के आधार पर उठाया जाएगा। क्या देश में भ्रष्टाचार की राजनीति चलेगी या फिर देश के मुकद्दर बनाने के मार्ग की इसे सबसे बड़ी बाधा मानकर इस पर चौतरफा प्रहार किया जाएगा।
कहना होगा कि मोदी सरकार ने भ्रष्टाचार की समस्या को लेकर जितनी नैरेटिव गढी, वह देश की सार्वजनिक व्यवस्था में व्याप्त खामियों के निराकरण पर केन्द्रित ना होकर अपने राजनीतिक विपक्ष की नेमिंग शेमिंग ब्लेमिंग पर केवल आधारित रही है। यदि वह इसे देश की मौलिक समस्या मानती तो इस समस्या के जड़ो पर राजनीतिक रूप से निरपेक्ष होकर प्रहार करती। मोदी सरकार यदि देश को सचमुच विकसित राष्ट्र बनाने का स्वप्र देख रही है तो उसे सबसे पहले भारत को भ्रष्टाचार मुक्त बनाने का एक चुनौतीपूर्ण कार्य निष्पादित करना होगा।

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