भारत को सशक्त बनाने का कौन सा मॉडल चलेगा
मनोहर मनोज

अभी जबसे अमेरिका ने भारत पर पचास फीसदी व्यापार टैरिफ सहित एच 1 बी वीसा सहित कई बम गिराए तबसे देश में इस बात पर बहस का यह सिलसिला चल पड़ा है की देश आखिर किस रा स्ते का वरण करे। देश ने अभी तक अपने विकास और लोक कल्याण की जो यात्रा तय की है, उसे अब अपने भविष्य को ध्यान में रखकर किस तरह का त्वरण प्रदान किया जाए?
देश के मुखिया प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तो अब लगातार आत्मनिर्भरता की दुहाई दे रहे हैं। उन्होने अभी हाल में एक बयान दिया है की भारत को चिप से लेकर शिप तक सब कुछ स्वयं निर्मित करना होगा। इसी क्रम में सरकार ने जीएसटी लागू होने के करीब 8 वर्ष बाद इसकी स्लैब दरों की संख्या और बोझ दोनों में अभूतपूर्व कमी लाकर देश के विशाल मध्य वर्ग को आगामी त्योहारी सीजन में जबरदस्त खरीददारी का ऑफर दिया। उद्देश्य घरेलू मांग में भारी बढ़ोत्तरी लाकर देशी उद्योगों को एक नयी रफ़्तार का बूस्टर डोज देना था। सरकार से इतर देखा जाये तो देश के आर्थिक विशेषज्ञों में भी देश के विकास दर , व्यापार और रोजगार में बढ़ोत्तरी को लेकर मीडिया में विचारों और सुझावों की बाढ़ आई हुई है। कोई भारत के विदेशी व्यापार के सबसे बड़े साझेदार अमेरिका के वैकल्पिक मॉडल की बात कर रहा है तो कोई घरेलू मांग और आंतरिक व्यापार को प्रोत्साहित करने की मॉडल पर बात कर रहा है तो कोई देशी संसाधनों, अन्वेषणों और नये आर्थिक क्षेत्रों की अधिकाधिक तलाश पर जोर दे रहा है।
पर देश की इस बात में देश के व्यवस्था की बुनियादी बात नजरअंदाज हो गयी है जो देश को मजबूत और विकसित करने की असली कड़ी है । और ये बुनियादी बात है सर्वप्रथम देश के गवर्नेंस की। शासन व्यवस्था की समूची संरचना को सुचारू, पारदर्शी , सेवा भावी , किफायती बनाकर सार्वजनिक शूचिता, उत्पादकता , निर्णय न्यायशीलता और समावेशी बनाने का कार्य देश के नवनिर्माण की पहली जरुरत है। देश के तीनो टायर की शासन व्यवस्था के मातहत कार्यरत करीब 3 करोड़ की नौकरशाही की चाक चौबंद दुरुस्त और ईमानदार सक्रियता ही देश की 140 करोड़ आबादी के हितो को प्रत्यक्ष प्रभावित कर सकती है। यही हमारी विकास दर , प्रगति , कल्याण और विकसित राष्ट्र की सही मायनो में तामीर कर सकती है। जब देश की तीन करोड़ नौकरशाही अपने चाल चरित्र और चेहरा तथा मनसा वाचा कर्मणा से अपनी भूमिका का निर्वाह करने को तैयार होगी या शीर्ष राजनीतिक नेतृत्व उन्हें तैयार करने को बाध्य कर लेगी तो समझ लीजिये देश की तक़दीर बदलने की शुरुआत हो जाएगी। इस तरह जब हमारा सार्वजानिक अमला अपनी एक नज़ीर पेश करने लायक बन जाएगा तब इसके उपरांत यानी दूसरे चरण में हमारा निजी क्षेत्र सरकार के प्रोत्साहन, अवसर और वातावरण का सदुपयोग करेंगे तब वे भी अपनी बराबर की नजीर पेश करने लगेंगे।
तीसरे चरण में जब देश के सार्वजनिक और निजी क्षेत्र सही पटरी पर आ गये तो देश की जनता को नियंत्रित, नियमित और उन्हें सही दिशा की ओर मोड़ने और जोड़ने का कार्य भी आसान हो जाएगा । देश की 140 करोड़ आबादी तब अपने कर्त्तव्य, अपने अनुशासन, अपनी भूमिका व अपने चरित्र अपनाने के लिए खुद ब खुद बाध्य हो जायेगी चाहे वह सरकार में शामिल लोगो की प्रेरणा से हो या फिर दंड के भय से । उपरोक्त उल्लिखित तीनों चरण का कार्य एक समुद्र मंथन की भांति का कार्य है जिसमे देश के संविधान , विधान , नीति नियम , कार्य कानून , निर्माण व कल्याण कार्यक्रमों तथा संस्थाओं की कार्य संस्कृति को सुधारने और जगाने से जुड़े सभी मामले शामिल है।
देखा जाये तो तीनो चरण के तहत देश के समक्ष अलग अलग चुनौतियाँ विराजमान है। इनमे कई मामलों का देश ने हल भी किया है पर कई सुधार एजेंडे अभी मुह बाये खड़े हैं।
मिसाल के तौर पर विधायिका कार्यपलिका और न्यायपालिका तीनों के मातहत भ्रष्टाचार और पद दुरूपयोग की जितनी सम्भावनायें है, देश उसकी पहचान करे। हमें केवल भ्रष्टाचार की पोलिटिकल नैरेटिव जनित बयान देकर देकर भ्रष्टाचार नियंत्रण के महती कार्य को अंजाम नहीं दे सकते। ऊपर से लेकर नीचे यानी पीएमओ से लेकर पंचायत तक तथा साउथ ब्लॉक से लेकर देश के एक एक ब्लॉक तक भ्रष्टाचार की जो संरचना है। इसमें जो जो तत्व संलग्न है बल्कि इससे भी पहले जो जो कारक भ्रष्टाचार के लिए जिम्मेदार है , यानी नीति नियम विवेकाधिकार , कार्य संस्कृति , प्रोत्साहन का अभाव इन सभी पर हम व्यापक समीक्षा करे और उसकी पूरी स्थिति प्रपत्र सार्वजानिक की जाए।
देश में करीब 25 लाख सार्वजनिक कार्यालय हैं जिसमे केंद्र राज्य और स्थानीय सरकार के सभी महकमे शामिल हैं । इसमें स्कूल कालेज अस्पताल पंचायत बैंक थाने भी शामिल है। इन सभी कार्यालयों में सभी वाजिब जन शिकायतों को आमंत्रित किया जाये और उनका जनता दरबार , इ गवर्नेंस और थर्ड पार्टी जन सुविधा केन्द्रो तथा आई टी तकनीक के जरिये निवारण हो। ये सभी अपनी भूमिका का बेहतर निर्वाह करने लगेंगे तय मानिये देश के नवनिर्माण का स्फुरण शुरू हो जायेगा। सार्वजनिक शूचिता के इस महाकार्य में देश में कई रोल मॉडल भी उभर कर सामने आये है जिसे हर जगह प्रसारित करने की आवशयकता है।
दूसरे चरण की बात करे तो निजी क्षेत्र पिछले पैतीस सालो से देश की एक बड़ी वास्तविकता बन गयी है। इन्हे हम अपनी विभिन्न नीतियों और नियंत्रणो के मार्फ़त संचालित करते हैं । पर इसमें सबसे सफल तरीका रहा है एक नियमन प्राधिकरण के मार्फ़त सार्वजनिक निजी दोनों क्षेत्र की उपस्थिति, भागीदारी, आपसी प्रतियोगिता और एक लेवल प्लेइंग फील्ड। इस कड़ी में देश में कई बदलाव और क्रांति मसलन टेलीकॉम क्रांति, सूचना क्रांति, मोबाइल क्रांति, डिजिटल क्रांति, रियल एस्टेट, राजमार्ग इत्यादि का त्वरित विकास हुआ। पर अभी ऐसे कई क्षेत्र बाकी है जहा सार्वजनिक और निजी दोनों मौजूद है पर वहां एक नियमन प्राधिकरण और लेवल प्लेइंग फील्ड नहीं है। इसमें शिक्षा, स्वास्थ्य , सार्वजनिक परिवहन , कृषि लागत और उत्पादों की मार्केटिंग, ऊर्जा उत्पादन ट्रांसमिशन और वितरण , रेलवे इत्यादि विशाल क्षेत्र शामिल हैं। कुल मिलाकर बुनियादी संरचना की बात करे तो दोनों सामाजिक और भौतिक अधो संरचना के मामले में मौजूदा सरकार ने बेहतर कार्य किया है पर अभी आवश्यकता है इसमें निजी और सार्वजनिक साझेदारी को और स्पष्ट व सार्थक बनाया जाए।
तीसरे चरण की बात करें तो अपराधी चरित्र की जनता को दण्डित करने के बजाय उनका मनोवैज्ञानिक तरीके से सुधार समाज की एक बड़ी चुनौती है। भ्रष्टाचार और अपराध समाज ये उत्पन्न ही ना हों देश इसके इकोसिस्टम बनाने पर कार्य करे। भ्रष्टाचार की बात करें तो देश में सुचना तकनीक तथा निजीकरण ने बड़ी भूमिका निभाई है, पर भ्रष्टाचार देश में तमाम नए नए निहित स्वार्थी स्वरूपों में पनपती रहती है जिसे ऑटो करेक्ट मोड में तीव्र राजनीतिक इच्छा शक्ति से निर्मूल किया जा सकता है। दूसरी महासमस्या बेरोजगारी को लेकर सबसे पहले देश की तीनो टायर की सरकारों को अपने खाली करीब 75 लाख पदों को भरना होगा। इनकी नियुक्तों तथा इनकी कार्य संस्कृति इन्हे वाजिब कांट्रेचुअल नियुक्ति के जरिये ही लायी जा सकती है। दूसरी बात की देश के संगठित निजी क्षेत्र को रोजगार व मजदूरी उदारता तथा कठोर उत्पादकता की नीति अपनाकर कम से कम 1 करोड़ सालाना रोजगार पैदा करने का टास्क दिया जाए । देश मे यदि हर तरह के निर्माण की क्रांति अपने शबाब पर चल रही हो तो देश में पांच करोड़ लोग निरंतर रोजगार में रहेंगे।
महंगाई को लेकर मौजूदा सरकार के रिकार्ड कमोबेश निरंतर संतोषजनक रहे है। तिस पर जीएसटी की नयी रिजीम से इनके और नियंत्रण में रहने की सम्भावना है। खुदरा मुद्रास्फीति रिकॉर्ड कमी की तरफ चल रहे है। देश एक नयी राह की तलाश में है ऐसे में क्यों नहीं हम देश के सभी बुनियादी सामाजिक राजनीतिक आर्थिक व प्रशासनिक सुधार के महती कार्य को अंजाम दे।
कुल मिलकर देश में राजनीतिक सामाजिक आर्थिक और प्रशासनिक सुधारों की शृंखला की निरंतरता बनाये रखना विकसित राष्ट्र की सुनिश्चितता को तय करेगी। यह कदम देश को आर्थिक तौर पर ऊँची विकास दर, सामाजिक तौर पर ऊँची मानव विकास दर , राजनितिक तौर पर बेहतर प्रतियोगी लोकतंत्र तथा प्रशासनिक तौर पर कार्यदक्षता और विराट जनसंवेदनशीलता सुनिश्चित करेंगी।

