बिहार में जनसुराज की राजनीति में कोई नया तास्सुर नहीं
मनोहर मनोज
बिहार में घोषित विधानसभा चुनाव के मद्देनजर अभी राजनीतिक बदलाव की एक नयी जमीन जन सुराज पार्टी की तरफ से तैयार की जा रही है। पार्टी के सर्बरा प्रशांत किशोर ने पिछले तीन साल के दौरान प्रदेश में जगह जगह अपने समय और संसाधन तथा धन और जन खूब खर्चे हैं। इस समूचे राजनीतिक प्रबंधन में वह पेशेवरों का खूब इस्तेमाल कर रहे हैं जिसमें उनके द्वारा प्रदेश के हर जिले में दल की इकाई गठन करने, पदाधिकारियों का चयन करने से लेकर लोगों के चुनावी जनमत बदलने के पैंतरे सभी शामिल रहे हैं। इससे प्रदेश के लोगो में पार्टी के बारे में जानकारी और प्रशांत किशोर का चेहरा उनके जेहन में कैद करने में मदद मिली है जो आम तौर पर सभी नवगठित राजनीतिक दल किया करते हैं । जन सुराज ने पार्टी के तौर पर राजनीति में करियर बनाने के इच्छुक प्रदेश के तमाम युवा और निवर्तमान राजनीतिक दलों के बेरोजगार और असंतुष्ट नेताओं को राजनीतिक प्लेटफार्म प्रदान किया है। इसमें प्रदेश के सभी जाति और धर्मों के लोग तो है पर ऊंची जाति के इसमें युवा अधिसंख्य है। पार्टी के निशाने पर एक तरफ लालू यादव के कुनबे से नियंत्रित आर जे डी है तो दूसरी और मौजूदा मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू है। बीजेपी से इनका मैच फिक्स लगता है, क्योंकि ये बीजेपी पार्टी के कुछ प्रादेशिक नेताओं पर हमला करते है पर समूची पार्टी के उच्च नेतृत्व के प्रति अपनी प्रतिक्रिया रिजर्व रखते है।
प्रशांत किशोर आरजेडी के परिवारवाद और उसके मौजूदा नेतृत्व कम पढ़े लिखे होने को अपना प्रमुख राजनीतिक अस्त्र बनाते है तो दूसरी और नितीश कुमार पर वह सठिया जाने और प्रदेश में पलायन को नहीं रोक पाने को लेकर हमला करते है। कुल मिलकर प्रशांत किशोर नरेंद्र मोदी और अरविन्द केजरीवाल की तर्ज पर व्यक्तिवादी राजनीती के नए संस्करण लगते है। प्रचार के नए तरीके, सोशल और औपचारिक मीडिया दोनों का इस्तेमाल, अपने नाम का एप और जमकर संसाधन खर्चने का भरपूर नजारा वह बिहार में दिखा रहे है।
प्रशांत किशोर की इस दौरान कई बार राजनीतिक हिपोक्रेसी भी उजागर हुई। मसलन वो कहते है की मेरी महत्वाकांक्षा राष्ट्रीय है। इस क्रम में वह प्रदेश के अध्यक्ष और राष्ट्रीय अध्यक्ष किसी और को बनाते है। पर इन दोनों पदाधिकारियों को न तो अभी तक जनता ने देखा है और न ही मीडिया से इनका कभी साक्षात्कर होता है। हर जगह जन सुराज की तरफ से चेहरा और बयान अकेले प्रशांत का ही होता है।
इधर प्रशांत किशोर ने बिहार में विधान सभा चुनाव किस जगह से लड़ेंगे इसे लेकर भी अपनी मंशा जाहिर कर दी है। कुल मिलाकर ये बात साफ तौर पर जाहिर हो गयी कि प्रशांत किशोर जेडीयू में शामिल होकर नीतीश का पार्टी में उत्तराधिकारी होना चाहते थे लेकिन जब उनकी दाल वहां नहीं गली तो अपने ईगो की रक्षा में व बदले की भावना से उन्होंने अपना दल निर्मित किया है। दूसरा
कई दलों की चुनावी रणनीति का कार्य करने के बाद उनकी खुद भी राजनीतिक प्लेयर बनने की महत्वाकांक्षा बलवती हुई जो जन सुराज पार्टी के रूप में आयी। चुनाव जीतने की रणनीति में प्रशांत किशोर सिद्धहस्त रहे है पर राजनीतिक विज़न को लेकर उनमे परिपक्वता नहीं है। मिसाल के तौर पर प्रशांत किशोर राजनीतिक बदलाव की बात करते है पर भ्रष्टाचार के मुद्दे से उन्हें गुरेज है। उन्हें इस बात को समझना पड़ेगा की कोई भी राजनीतिक बदलाव निवर्तमान शासक के भ्रष्टाचार, भाई भतीजावाद, अकर्मण्यता और संकुचित दृष्टि के खिलाफ होता है। वह कहते है बिहार में कोई राजनेता हरिश्चंद्र नहीं है, इसलिए भ्रष्टाचार कोई राजनीतिक मुद्दा नहीं है। प्रशांत को मालूम होना चाहिए कि विगत की लालू सरकार के खिलाफ प्रदेश के लोगों का जनमत लालू के कुनबे के भ्रष्टाचार और परिवारवाद की वजह से ही उपजा। दूसरा विकास की उपेक्षा एक और प्रमुख कारण था। चूँकि मौजूदा मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर भ्रष्टाचार और परिवारवाद का मुद्दा नहीं बनता और दूसरा विकास की उपेक्षा का मुद्दा भी नहीं बनता।
ऐसे में प्रशांत किशोर बिहारियों के पलायन को नितीश कुमार के खिलाफ एक बड़ा मुद्दा बनाते है। उनके पास इस बात की समझ नहीं है की किसी भी प्रदेश की अर्थव्यवस्था समूची राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था से जुडी होती है। इसमें प्रदेश का कोई भी उत्पादन कारक समूचे देश स्तर पर गतिशील होता है। ऐसे में एक उत्पादन कारक के रूप में बिहार में मानव संसाधन प्रचूर है और इसकी देशव्यापी मांग है तो श्रम का गतिशील होना स्वाभाविक है। अतः पलायन का मूल कारण आर्थिक है। कोई अभाव और दबाव में बिहार की श्रम शक्ति देश विदेश के अन्य हिस्से में नहीं जा रही है बल्कि बेहतर आमदनी और जीवन स्तर के लिए जा रही है। वहाँ के छात्र भी बेहतर बेहतर शिक्षा और रोजगार के लिए प्रदेश से बाहर जाते है। इस वजह से बिहार की अर्थव्यवस्था को उसकी मनीऑर्डर या यों कहे रेमिटेंस राशि से काफी फायदा मिला है। साथ साथ बिहार के ग्रामीण परिवारों को इस वजह से अपनी आर्थिक सुरक्षा मजबूत करने में मदद मिली है। और यह स्थिति केवल बिहार नहीं बल्कि देश के अन्य राज्यों के भी साथ है। प्रशांत किशोर का पलायन पर किया जाने वाला वक्तव्य बिहार राज्य की अवमानना से ज्यादा वहां के मेहनतकश लोगों की एक तरह से अवमानना करता है। केरल जैसे विकसित राज्य के करोडो लोग प्रवास पर जाते है। हाँ बिहार में उद्योग और उद्यमशीलता बढ़ाने का कोई विजन प्रशांत के पास हो तो उन्हें उसे पेश करना चाहिए।
प्रशांत एक तरफ बदलाव और राजनितिक क्रांति की बात करते है पर हर चुनावी रैली में वह भी अन्य दलों की तरह 500 -500 रुपये में भीड़ जुटाते हैं। रैली आयोजन में करोडो रुपये खर्च करते रहे है। उन्हें लगता है की बिना इवेंट किये वह अन्य राजनीतिक दलों के रेस में नहीं आ सकते। फिर बदलाव किस बात का?आखिर जब राजनीति और चुनाव में बेतहाशा पैसे खर्च किये जायेंगे तो फिर उस पैसे की येन केन उगाही भी की जाएगी। जातिवाद से ग्रसित बिहार में वह जातिविहीन राजनीती की बात करने का आदर्शवाद जरूर दिखाते है। जैसे की वह कहते हैं की प्रदेश में यादव मुख्यमंत्री जरूर होना चाहिए पर वह योग्य पढ़ा लिखा यादव होना चाहिए न की कम पढ़ा लिखा बड़े यादव नेता का बेटा होना चाहिए।
वही अल्पसंख्यक मुस्लिमो के मामले में प्रशांत उनके अंदर धार्मिक रूढ़िवादिता को सुधारने और आधुनिक जीवन शैली अपनाने की बात करने की हिम्मत न दर्शा कर उनको अपना वोट बैंक बनाने के नए पैतरे दिखाते है। कहते है की आप राजनीतिक दलों से डरते है जबकि आपको अल्लाह के अलावा किसी से नहीं डरना चाहिए। कुल मिलाकर प्रदेश देश की लोकतांत्रिक राजनीती की कवायद में ये ठीक है की जनता भी भ्रष्ट , लालची दिखती है और बदलाव व सुधार की बातों को आसानी से फॉलो नहीं करती है। पर सवाल ये है की 74 के आंदोलन की तर्ज़ पर जो व्यक्ति जो आज के दौर के बदलाव का सारथी बनना चाहता है वह जनता को सही बात समझाने और उन्हें सही राह पर ले जाए तथा बिना राजनीतिक फलाफल का जज्बा दिखाए काम करे तो बात बने । अन्यथा इतिहास इन्हें भी उसी तरह से कूड़ेदान में फेक देगा जैसे एक समय की राजनीतिक सनसनी रहे अरविन्द केजरीवाल को भी आखिरकार जनता ने फेंका। बहरहाल प्रशांत किशोर मीडिया की भरपूर कवरेज ले जा रहे है पर बदलाव के अग्रदूत के रूप में उनके चरित्र में बहुत ठोस झलक अभी नहीं दि खता है।
Warm Regards,
Manohar Manoj
Editor ECONOMY INDIA President INDIAN YOUNG JOURNALISTS ORGANISATION Author A CRUSADE AGAINST CORRUPTION ON THE NEUTRAL PATH
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