“बिहार डायन निषेध अधिनियम 2000 के 25 साल: कितनी गई हैं मारी और कितनी हुई हैं बेघर”
नई दिल्ली, 9 दिसंबर 2024. निरंतर ट्रस्ट और बिहार महिला फेडरेशन द्वारा दिल्ली के इंडियन विमेन प्रेस कॉर्प्स में “बिहार डायन निषेध अधिनियम 2000 के 25 साल: कितनी गई हैं मारी और कितनी हुई हैं बेघर” विषय पर चर्चा का आयोजन किया गया। इस प्रेस कॉन्फ्रेंस का उद्देश्य बिहार के 10 ज़िलों में किए गए सर्वेक्षण के अहम नतीज़ों को सामने लाना था। यह सर्वे उन महिलाओं के अनुभवों को सामने लाने का काम करती है जो डायन प्रथा का शिकार होती हैं। साथ ही इसका उद्देश्य सार्वजनिक मंचों पर इससे जुड़ी बहस को नए नज़रीये से देखा जा सके।
बातचीत में बिहार और झारखंड में डायन निषेध अधिनियम के बनने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले अधिवक्ता अजय जायसवाल भी शामिल थे। झारखंड में आशा (ASHA) संस्था के संस्थापक अजय ने कहा कि डायन करार दिए जाने का डर महिलाओं में बहुत गहरे तक धंसा रहता है। उन्होंने कहा कि “झारखंड में हमें अक्सर ऐसी महिलाओं के फोन आते हैं जो रात में सो नहीं पाती, क्योंकि उन्हें डर होता है कि किसी भी वक्त उन्हें मार दिया जाएगा। कभी आपको इस लिए डायन बोला जा सकता है कि आप उस आदिवासी समुदाय से हैं जो पारंपरिक रूप से शराब बनाता है, तो इसलिए भी कह दिया जाता है कि आपके पड़ोस में किसी बच्चे की मृत्यु हो गई है। “
डायन हत्या एवं प्रताड़ना पर हुए इस परिचर्चा का समापन कुछ जरूरी मांगों के साथ हुआ जो इस समस्या को हल करने के लिए सरकार को उठाने चाहिए। ये मांगे हैं-
1. डायन हिंसा और प्रताड़ना को बढ़ावा देने में ओझा की बहुत बड़ी भूमिका होती है। ओझा पहला व्यक्ति होता है जो डायन होने की पुष्टि करता है। ज़रूरी है कि पंचायत स्तर पर अंधविश्वास उन्मूलन अभियान में उनकी हिस्सेदारी और जवाबदेही तय की जाए।
4. बारिश एवं भीषण गर्मी के समय जब बच्चों में हैजा, मलेरिया एवं कालाजार जैसी बीमारियां एवं इनसे होने वाली मृत्यु चरम पर होती हैं तब डायन डायन कुप्रथा के खिलाफ जागरूकता अभियान जोर-शोर से चलाया जाना चाहिए।
5. डायन प्रथा निषेध कानून को और कारगर बनाना।
6. राज्य स्तर पर प्रायोजित जेंडर जस्टिस सेंटरस् के लिए डायन प्रथा जनित हिंसा को एक मुख्य मुद्दा बनाया जाना चाहिए।
निरंतर संस्था के बारे में
निरंतर, शिक्षा के माध्यम से सशक्तीकरण का मार्ग प्रशस्त करने और शैक्षिक प्रक्रियाओं को नारीवादी आलोचनात्मक दृष्टिकोण से देखने और निर्धारित करने में विश्वास रखती है। हम ऐसी रूपांतरकारी औपचारिक व गैर-औपचारिक शैक्षिक प्रक्रियाओं के पक्षधर हैं जो हाशियाई समुदायों की लड़कियों और महिलाओं को भी अपने हालातों को और बेहतर ढंग से समझने व बदलने के लिए तैयार कर सके।
निरंतर सामुदायिक स्तर पर भी काम करता है और शोध व पैरवी के क्षेत्र में भी काम करता है। हम ऐसे मुद्दों पर शोध व पैरवी के लिए विशेष रूप से सक्रिय रहे हैं जिन पर राज्य और नागर समाज को और ज़्यादा ध्यान देना चाहिए। समुदाय के स्तर पर नारीवादी नेतृत्व विकसित करना हमारे कार्यभार का एक महत्वपूर्ण अंग है।
निरंतर 1993 में अपनी स्थापना के बाद से ही महिला आंदोलन तथा अन्य लोकतांत्रिक अधिकार आंदोलनों में सक्रिय रूप से भागीदार रहा है।