बिहार को लालटेन युग से निकालकर बिजली युग में पहुँचाने वाले बिहार के बिजली मंत्री बिजेंद्र प्रसाद यादव का साक्षात्कार
बिहार सर् कार में वरिष्ठम मंत्री बिजेंद्र प्रसाद यादव अपने राजनितिक जीवन में निर्विवाद और एक टास्क मास्टर की छवि रखने वाले राजनेता है। पिछले तीन दशक से बिहार की तमाम सरकारों में काबीना मंत्री रहे श्री यादव एक सियासतदां होते हुए ज्यादा लाइम लाइट में नहीं रहते और नितीश सरकार की प्राथमिकताओं को हासिल करने में निरंतर तल्लीन रहते है। एक दशक पूर्व जब बिहार में बिजली बिलकुल नदारथ रहां करती थी , त ब नितीश कुमार ने यह बयान दिया था की अगर वह प्रदेश की जनता को बिजली नहीं दे पाए तो वह लोगो से वोट नहीं मांगेगे। आज जहां देश के अन्य राज्यों के शहरो में छह से आठ घंटे बिजली नहीं रहती वही बिहार के सत्तर हज़ार गांवो में अब बिजली चौबीस घंटे उपलब्ध रहती है। आखिर मंत्री बिजेंद्र यादव ने यह कारनामा कैसे हासिल किया, प्रस्तुत है इकोनॉमी इंडिया की उनसे बातचीत के प्रमुख अंश।
प ० बिहार में लालटेन युग से अब चौबीस घंटे बिजली युग में पहुंचने का जो बड़ा टर्नअराउंड आया है , वह कैसे संभव हुआ ?
उ ० देखिये , बिहार में एक समय था जब सूबे में बिजली की कुल जमा खपत महज 700 मेगावाट थी, वही अब उस बिहार में बिजली की कुल खपत 8000 मेगावाट हो चुकी है। हम नयी बिजली नी ति के तहत प्रदेश में बिजली के तीनो महकमों उत्पादन , वितरण और ट्रांसमिशन पर यथोचित ध्यान दिया। ट्रांसमिशन में केंद्र के नेटवर्क का सहयोग मिला। प्रदेश में बिजली उत्पादन की यूनिट ज्यादा नहीं थी, पर केंद्रीय पूल से बिजली की प्रयाप्त सप्लाई हुई और सौभाग्या योजना के जरिये बिहार के हर गांव और हर घर को हमने बिजली कनेक्शन दिया। हम बिजली में ज्यादा सब्सिडी नहीं देते और दूसरी तरफ यहाँ के उपभोक्ता बिजली बिल के भुगतान कल्चर के अभ्यस्त हो चुके है। ऐसे में बिहार में एक तरह से बिजली क्रांति को हमने रूपायित किया है।
प ० बिहार में सड़कों का जो इतना बड़ा जाल बिछा , लोगो का उस पर कहना है बिहार में इसके अलावा काम नहीं हुआ, यहाँ उद्योग पूरी तरह से उपेक्षित है , ऐसा क्यों ?
उ ० देखिये बिहार में बिजली क्रांति से बड़ी क्रांति सड़क निर्माण की क्रांति हुई। पर हमने इसका ज्यादा प्रचार नहीं किया। हमारे सूबे के हर गांव में सड़को का जो नेटवर्क बिछा है , वैसा देश के किसी राज्य में नहीं है। बल्कि गुजरात जैसे विकसित राज्य में भी ऐसा नहीं है। अभी मेरे चुनाव क्षेत्र में गुजरात के बड़े अधिकारी इलेक्शन आब्जर्वर बनकर आये , वह यहाँ की सडको का नेटवर्क देखकर हैरान हो गए , कहा की ऐसा गुजरात में नहीं है।
प ० प्रशांत किशोर का कहना है बिहार के मजदूर लोग पलायन कर रहे है जो बिहार के भारी आर्थिक दुर्दशा का परिचायक है ?
उ ० देखिये उनकी बात को मै गंभीरता से नहीं लेता , उन्हें जिनसे पैसा मिलता है , उसके लिए चुनाव प्रचार करते है. अब उन्हें राजनीती का शौक चढ़ा है , इसलिए ऐसी बहकी बहकी बात कर रहे है। देखिये बिहार में न केवल सड़क बल्कि सभी क्षेत्रो में बहुत कार्य हुआ है। देखिये प्रदेश के हर पंचायत में बारहवीं कक्षा तक के विद्यालय की स्थापना सुनिश्चित की गयी है। नलजल योजना यहाँ शुरू की गयी जिसे बाद में केंद्र ने फॉलो किया। यहाँ कृषि विकास का लॉन्ग मैप बनाया गया। इसे देख कर पूर्व राष्ट्रपति ए पी जे कलाम ने कहा की दूसरी हरित क्रांति बिहार और प्रूवोत्तर जैसे राज्यों में होगी क्योकि यहाँ बारहोमासी जल से भरी नदियां हैं। उद्योग के दिशा में अब काफी कार्य हो रहा है। अभी नवादा में सीमेंट फैक्टरी लगी है। दरअसल बिहार में कोई भूस्वामी उद्योग के लिए जल्द जमीन नहीं देना चाहता है। इस वजह से यहाँ उद्योग को बढ़ावा नहीं मिल पाया।
प ० आपने बिहार में विद्यालय बनाने की बात की , पर उच्च शिक्षा में अभी भी अराजकता और गुणविहीनता का आलम है , इस पर क्या कहेंगे ?
उ ० देखिये बिहार में अब इंजीनियरिंग और मेडिकल संस्थानों की तेजी से स्थापना की जा रही है। रह गयी विश्वविद्यालय प्रशासन को सुधारने की बात तो उस पर भी काम चालू हो गया है।
प ० बिहार के अर्थव्यस्था का भविष्य क्या दि खता है आपको
उ ० देखिये बिहार एक मैन्युफैक्चरिंग प्रदेश तो नहीं , एक उपभोक्ता प्रधान अर्थव्यस्था है। इसमें भी इसके विकास की प्रबल सम्भावना है। मै प्रदेश का राजस्व मंत्री रहा। हमने बिहार में समूचे देश भर में रिकार्ड व्यावसायिक कर संग्रहण का रिकार्ड बनाया है। यानी बिहार में अर्थव्यस्था को समुन्नत करने की पुरजोर सम्भावना छिपी है।
प ० बिहार में नीतीश सरकार पर नौकरशाही के हावी होने की बात कही जाती है , क्या राजनीतिक नेतृत्व यहाँ अक्षम है?
उ ० देखिये जो योग्य और काबिल होते है , उनका वर्चस्व ज्यादा होता है , निर्भर करता है की राजनितिक नेतृत्व कितना कुशल है। मै तो नौकरशाही को नियंत्रित करना जानता हूँ। राजनीतिक नेतृत्व धीरे धीरे सक्षम होता जा रहा है। आपके मीडिया में भी जब लेखक पत्रकार नाकाबिल होते है तो डायरेक्टर्स अपना वर्चस्व बढ़ाने लगते है।